Tuesday, January 11, 2022

यूं गुजर गए कितने साल चुपके-चुपके

यूं गुजर गए कितने साल चुपके-चुपके,

जैसे कल ही  मिले थे पहली बार चुपके-चुपके। 


कैफियत हवाओं की कह रही है हम से,

गुजारी है बागों से बहार चुपके-चुपके।  


वक़्त पर कदम गर उठाये न जायें ,

हो जाता है सुब कुछ बर्वाद चुपके-चुपके।  


याद है तेरा नज़रें झुका लेना, और 

हांथों पे रखना अपना हाथ चुपके-चुपके।  


महफ़िल में तेरी ज़िक्र पे खामोश रहते हैं,

और करते हैं तुम, हम याद चुपके-छूओके।