Thursday, May 13, 2021

मसले ज़िन्दगी से कब ख़तम होंगे,
कांटे रास्तों में कब नहीं होंगे,
मज़िल मिलने का सिलसिला चलता रहेगा,
और चलने वाले कभी काम नहीं होंगे। 


 कहाँ मिलते हैं हँसी ख्वाब सभी को,

कहाँ मिलते हैं सवालों के जबाब सभी को,

चराग भी काफी है रोशनी के लिए 

कहाँ मिलते हैं आफताब सभी को.



सोने के पिंजरे भी नागवार हैं उन्हें, गर
परिंदों की आँखों में कुछ आसमा सा है. 

मुश्किल है, मगर नामुमकिन नहीं है,
गर इरादों में अपने कुछ चट्टा सा है.

माना सम्भालना हर कदम मुमकिन नहीं
पर क्या पता कब वक़्त इन्तेहाँ सा है. 



चंद लम्हे क्या गुजार  लिए साथ उनके,
क़तरा-क़तरा मुस्कुराहटों का हिसाब देने पड़ा।