Thursday, November 10, 2011

मुझ पर दिल दुखाने का इलज़ाम है ज़माने का,

उन्हें भी मेरे पीने से ऐतराज़ है,
जो आँखों में जाम लिए फिरते हैं.

मुझ पर दिल दुखाने का इलज़ाम है ज़माने का,
और वो तीरे नज़र खुलेआम लिए फिरते हैं

उनको देख मेरी आँखों में रंग आ जातें हैं,
जो मेरी जिंदगी में रंग तमाम किये फिरते हैं.

ज़माना पूछे तो कुछ भी कह दें, उन्हें क्या बताएं,
जो मेरी सांसों का आयाम लिए फिरते हैं.

उनको खबर नहीं, जो मुस्कुरा के चले जातें हैं,
वो मेरी यादों का सामान लिए फिरते हैं.

इक ज़माने से, वो अपने फसानों में ग़ुम  हैं,
और हम हसरत-ए-नाकाम लिए फिरतें हैं.



Sunday, November 6, 2011

फिर जाड़ों का मौसम आया

सर्द हवा में ओस की बूदें, आँखों में सावन आया,
साल पुराना बीत गया, फिर जाड़ों का मौसम आया,

सब के सब वैसे ही हैं, छोटे दिन लम्बी रातें,
मुझको याद दिलाते हैं, पिछले जाड़ों की बातें,
हर चीज दिखी पहले जैसी, इक तू हीं नहीं नजर आया.
साल पुराना .......

कुछ ऐसा ही मौसम था, जब वो पहली बार मिले,
तारों वाली चादर ओढ़े, चाँद को जैसे आड़ किये,
बूंदों का श्रृंगार किया, ओसों से भीगा साया .
साल पुराना .......

देखूं मैं उनको देखूं , जब सर्द हवाएं चलती हैं,
भींगे ओस में पत्तों जैसे, साँसें भीगी रहतीं हैं,
अब "अहसास" हुआ मुझको, यादों का आलम आया.
साल पुराना .......