Thursday, November 10, 2011

मुझ पर दिल दुखाने का इलज़ाम है ज़माने का,

उन्हें भी मेरे पीने से ऐतराज़ है,
जो आँखों में जाम लिए फिरते हैं.

मुझ पर दिल दुखाने का इलज़ाम है ज़माने का,
और वो तीरे नज़र खुलेआम लिए फिरते हैं

उनको देख मेरी आँखों में रंग आ जातें हैं,
जो मेरी जिंदगी में रंग तमाम किये फिरते हैं.

ज़माना पूछे तो कुछ भी कह दें, उन्हें क्या बताएं,
जो मेरी सांसों का आयाम लिए फिरते हैं.

उनको खबर नहीं, जो मुस्कुरा के चले जातें हैं,
वो मेरी यादों का सामान लिए फिरते हैं.

इक ज़माने से, वो अपने फसानों में ग़ुम  हैं,
और हम हसरत-ए-नाकाम लिए फिरतें हैं.



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