सोने के पिंजरे भी नागवार हैं उन्हें, गर
परिंदों की आँखों में कुछ आसमा सा है.
परिंदों की आँखों में कुछ आसमा सा है.
मुश्किल है, मगर नामुमकिन नहीं है,
गर इरादों में अपने कुछ चट्टा सा है.
माना सम्भालना हर कदम मुमकिन नहीं
पर क्या पता कब वक़्त इन्तेहाँ सा है.
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