उनके होने से राह भी मंजिल थी
मंजिल अब राह की दिवार नजर आती है
मुद्दतों भुलाने कि कोशिश की जिसको
बंद आँखों से वो सक्कल बार-बार नजर आती है
कैसे छुपाऊँ ये दस्ता ज़माने से
मेरी हर बात में उनकी कोई बात निकल आती है
तुम्हे तो खुदा होने का गुमान था ये जिंदगी
आज तू क्यों इतनी लाचार नजर आती है
टूट जाने का रिश्ता ये कैसी सजा है
पूरी कायनात नाराज नजर आती है
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