कभी मौका कभी मर्जी, कातिल बने मेरे।
दुनिया निभाने में किस ओर आ निकला
कभी कांटे कभी पत्थर मंज़िल बने मेरे।
आँखों का बहम टूटा जब किनारे ही बहगये
कभी तूंफा कभी दरिया साहिल बने मेरे।
ओ आज भी मसहूर हैं औरों की बज़्म में
पैमाने, कभी मैखाने महफ़िल मेरे।
दुनिया निभाने में किस ओर आ निकला
कभी कांटे कभी पत्थर मंज़िल बने मेरे।
आँखों का बहम टूटा जब किनारे ही बहगये
कभी तूंफा कभी दरिया साहिल बने मेरे।
ओ आज भी मसहूर हैं औरों की बज़्म में
पैमाने, कभी मैखाने महफ़िल मेरे।
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