Sunday, July 31, 2016

कभी मौका कभी मर्जी, कातिल बने मेरे

कभी मौका कभी मर्जी,  कातिल बने मेरे।

दुनिया निभाने में किस ओर आ निकला
कभी कांटे कभी पत्थर मंज़िल बने मेरे।

आँखों का बहम टूटा जब किनारे ही बहगये
कभी तूंफा कभी दरिया साहिल बने मेरे।

ओ आज भी मसहूर हैं औरों की बज़्म में
पैमाने, कभी मैखाने महफ़िल मेरे।   

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