Saturday, July 30, 2016

हर तरफ बिखरें हैं पन्ने तेरी किताब के

हर तरफ बिखरें हैं पन्ने तेरी किताब के,
किस-किस को समेटूं ज़िन्दगी तेरे हिसाब से।

बहुत मुश्किल है तुझसे रूबरू होना,
बहुत मुश्किल है बचपाना तेरे लिबास से।

मेरी ख़ामोशी बुज़दिली नहीं,
रिश्ते टूट भी सकते हैं सवालों के जबाब से।

खामोश गुजरता हूँ उसकी गलियो से,
लोग शोर मचा देते हैं मेरे जाने के बाद से।

यूं तो चराग भी काफी है रास्ता दिखने के लिए,
वरना क्या फर्क पड़ता है आफताब से।



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